Skip to main content

Sunday, 22 December 2024 | 07:51 pm

|   Subscribe   |   donation   Support Us    |   donation

Log in
Register


नृसिंह अवतार का मुख्य उद्देश्य अधर्म के प्रतीक दैत्य हिरण्यकश्यप का वध करना तथा अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करके उसे राज सिंहासन पर

भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार: अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने एवं आततायी का नाश करने हेतु भगवान विष्णु ने लिया चौथा अवतार

भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह भगवान का शरीर मनुष्य का था जबकि उनका मुख सिंह यानी कि शेर का था इसी कारण उन्हें नर + सिंह = नरसिंह कहा जाता है। नरसिंह अवतार भगवान विष्णु के उग्र रूप का आभास कराता है । नरसिंह भगवान के शरीर में हाथ के स्थान पे शेर के पंजे थे और उसमे बड़े बड़े नाखून इसी नाखून से भगवान ने हिरण्यकश्यपु का वध किया था।
 |  Satyaagrah  |  Dharm / Sanskriti

भगवान नरसिंह के अवतार से दो बातें तो चरितार्थ होती हैं कि भगवान हमारे आस-पास हर एक वस्तु में है हर एक इंसान में है हर एक जीव में तभी तो भगवान नरसिंह खंभे से प्रगट हो गए। और दूसरी यह कि जो कोई भी सच्चे मन से भगवान की आराधना करता है भगवान उसका साथ कभी नहीं छोड़ते हैं। प्रहलाद सच्चा भक्त था इसलिए उसका बाल भी बांका नहीं हो सका । कहते हैं ना जाको राखे साइयां मार सके ना कोई। भगवान विष्णु का नृसिंह  अवतार इतना ज्यादा विध्वंसक  था कि स्वयं उनका भक्त प्रह्लाद भी इससे डर गया था। तब भगवान शिव को शरभ अवतार लेकर उन्हें शांत करवाना पड़ा था। भगवान विष्णु के दशावतारों में से नरसिंह अवतार चतुर्थ अवतार है। इसे नृसिंह अवतार भी कहते हैं जिसमें उनका आधा शरीर सिंह तथा आधा मानव का  था।

सतयुग में ऋषि कश्यप के दो पुत्र थे हिरण्याक्ष और हिरणाकश्यप। हिरण्याक्ष भगवान ब्रह्म से मिले वरदान की वजह से बहुत अहंकारी हो गया था। अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए वो भूदेवी को साथ लेकर पाताल में भगवान विष्णु की खोज में चला गया।

भगवान विष्णु ने वराह अवतार में उसके साथ युद्ध किया और उसका विनाश कर दिया। लेकिन संसार के लिए खतरा अभी टला नही था क्योंकि उसका भाई हिरणाकश्यप अपने भाई के मौत की बदला लेने को आतुर था।

उसने देवताओ से बदला लेने के लिए अपनी असुरो की सेना से देवताओ पर आक्रमण कर दिया। हिरणाकश्यप देवताओ से लड़ता लेकिन हर बार भगवान विष्णु उनकी मदद कर देते।

हिरणाकश्यप ने सोचाअगर मुझे विष्णु को हराना है तो मुझे अपनी रक्षा के लिए एक वरदान की आवश्यकता है। क्योंकि मै जब भी देवताओ और मनुष्यों पर आक्रमण करता हु , विष्णु मेरी सारी योजना तबाह कर देता है ……उससे लड़ने के लिए मुझे शक्तिशाली बनना पड़ेगा

अपने दिमाग में ऐसे विचार लेकर वो वन की तरफ निकल पड़ता है और भगवान ब्रह्मा की तपस्या में लीन हो जाता हो। वो काफी लम्बे समय तक तपस्या में इसलिए रहना चाहता था ताकि वो भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांग सके। इस दौरान वो अपने ओर अपने साम्राज्य के बारे में भूलकर कठोर तपस्या में लग जाता है।

इस दौरान इंद्रदेव को ये ज्ञात होता है कि हिरणाकश्यप असुरो का नेतृत्व नही कर रहा है। इंद्रदेव सोचते है कियदि इस समय असुरो को समाप्त कर दिया जाए तो फिर कभी वो आक्रमण नही कर पाएंगे। हिरणाकश्यप के बिना असुरो की शक्ति आधी है अगर इस समय इनको खत्म कर दिया जाए तो हिरणाकश्यप के लौटने पर उसका आदेश मानने वाला कोई शेष नही रहेगा।

ये सोचते हुए इंद्र अपने दुसरे देवो के साथ असुरो के साम्राज्य पर आक्रमण कर देते है।इंद्रदेव के अपेक्षा के अनुसार हिरणाकश्यप के बिना असुर मुकाबले में कमजोर पड़ गये और युद्ध में हार गये। इंद्रदेव ने असुरो के कई समूहों को समाप्त कर दिया।

 Narasimha relief temple India Belur

हिरणाकश्यप की राजधानी को तबाह कर इन्द्रदेव ने हिरणाकश्यप के महल में प्रवेश किया। जहा पर उनको हिरणाकश्यप की पत्नी कयाधू नजर आयी। इंददेव ने हिरणाकश्यप की पत्नी को बंदी बना लिया ताकि भविष्य में हिरणाकश्यप के लौटने पर उसके बंधक बनाने के उपयोग कर पाए। इंद्रदेव जैसे ही कयाधू को इंद्र लोक लेकर जाने लगे महर्षि नारद प्रकट हुए और उसी समय इंद्र को कहाइंद्रदेव रुक जाओ आप ये क्या कर रहे हो

महर्षि नारद इंद्रदेव के कयाधू को अपने रथ में ले जाते देख क्रोधित हो गये। इंददेव में नतमस्तक होकर महर्षि नारद से कहामहर्षि हिरणाकश्यप के नेतृत्व के बिना असुरो पर आक्रमण किया है और मेरा मानना है कि असुरो के आतंक को समाप्त करने का यही समय है।

वहा के विनाश को देखकर महर्षि नारद ने क्रोधित स्वर में कहाहा ये सत्य है मै देख सकता हूं, लेकिन ये औरत इसमें कहा से आयी , क्या इसने तुमसे युद्ध किया , मुझे ऐसा नही लग रहा है कि इसने तुम्हारे विरुद्ध कोई शस्र उठाया है फिर तुम उसको क्यों चोट पंहुचा रहे हो ? “

इंद्रदेव ने महर्षि नारद की तरफ देखते हुए जवाब दिया कि वो उसके शत्रु हिरणाकश्यप की पत्नी है जिसे वो बंदी बना करले जा रहा है ताकि हिरणाकश्यप कभी आक्रमण करे तो वो उसका उपयोग कर सके। महर्षि नारद ने गुस्से में इन्द्रदेव को कहा कि केवल युद्ध जीतने के लिए दुसरे की पत्नी का अपहरण करोगे और इस निरपराध स्त्री को ले जाना महापाप होगा।

इंद्रदेव को महर्षि नारद की बाते सुनने के बाद कयाधू को रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नही था। इंद्रदेव ने कयाधू को छोड़ दिया और महर्षि नारद को उसका जीवन बचाने के लिए धन्यवाद दिया।

महर्षि नारद ने पूछा कि असुरो के विनाश के बाद वो अब कहा रहेगी। कयाधू उस समय गर्भवती थी और अपनी संतान की रक्षा के लिए उसने महर्षि नारद को उसकी देखभाल करने की प्रार्थना की। महर्षि नारद उसको अपने घर लेकर चले गये और उसकी देखभाल की।

इस दौरान वो कयाधू को विष्णु भगवान की कथाये भी सुनाया करते थे जिसको सुनकर कयाधू को भगवान विष्णु से लगाव हो गया था। उसके गर्भ मर पल रहे शिशु को भी विष्णु भगवान की कहानियों ने मोहित कर दिया था।

समय गुजरता गया एक दिन स्वर्ग की वायु इतनी गर्म हो गयी थी कि सांस लेना मुश्किल हो रहा था। कारण खोजने पर देवो को पता चला कि हिरणाकश्यप की तपस्या बहुत शक्तिशाली हो गयी थी जिसने स्वर्ग को भी गर्म कर दिय था। इस असहनीय गर्मी को देखते हुए देव भगवान ब्रह्मा के पास गये और मदद के लिए कहा। भगवान ब्रह्मा को हिरणाकश्यप से मिलने के लिए धरती पर प्रकट होना पड़ा। भगवान ब्रह्मा हिरणाकश्यप की कठोर तपस्या से बहुत प्रस्सन हुए और उसे वरदान मांगने को कहा।

हिरणाकश्यप ने नतमस्तक होकर कहाभगवान मुझे अमर बना दो

भगवान ब्रह्मा ने अपना सिर हिलाते हुए कहापुत्र , जिनका जन्म हुआ है उनकी मृत्यु निश्चित है मै सृष्टि के नियमो को नही बदल सकता हु कुछ ओर मांग लो

हिरणाकश्यप अब सोच में पड़ गया क्योंकि जिस वरदान के लिए उसने तपस्या की वो प्रभु ने देने से मना कर दिया |हिरणाकश्यप अब विचार करने लगा कि अगर वो असंभव शर्तो पर म्रत्यु का वरदान मांगे तो उसकी साधना सफल हो सकती है। हिरणाकश्यप ने कुछ देर ओर सोचते हुए भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा।

प्रभु मेरी इच्छा है कि मै ना तो मुझे मनुष्य मार सके और ना ही जानवर , ना मुझे कोई दिन में मार सके और ना ही रात्रि में , ना मुझे कोई स्वर्ग में मार सके और ना ही पृथ्वी पर , ना मुझे कोई घर में मार सके और ना ही घर के बाहर , ना कोई मुझे अस्त्र से मार सके और ना कोई शस्त्र से

हिरणाकश्यप का ये वरदान सुनकर एक बार तो ब्रह्मा चकित रह गये कि हिरणाकश्यप का ये वरदान बहुत विनाश कर सकता है लेकिन उनके पास वरदान देने के अलावा ओर कोई विकल्प नही था। भगवान ब्रह्मा ने तथास्तु कहते हुए मांगे हुए वरदान के पूरा होने की बात कही और वरदान देते ही भगवान ब्रह्मा अदृश्य हो गये।

हिरणाकश्यप खुशी से अपने साम्राज्य लौट गया और इंद्रदेव द्वारा किये विनाश को देखकर बहुत दुःख हुआ। उसने इंद्रदेव से बदला लेने की ठान ली और अपने वरदान के बल पर इंद्रलोक पर आक्रमण कर दिया। इंद्रदेव के पास कोई विकल्प ना होते हुए वो सभी देवो के साथ देवलोक चले गये। हिरणाकश्यप अब इंद्रलोक का राजा बन गया।

हिरणाकश्यप अपनी पत्नी कयाधू को खोजकर घर लेकर गया। कयाधू के विरोध करने के बावजूद हिरणाकश्यप मनुष्यों पर यातना ढाने लगा और उसके खिलाफ आवाज उठाने वाला अब कोई नही था। अब कयाधू ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रहलाद रखा गया।जैसे जैसे प्रहलाद बड़ा होता गया वैसे वैसे हिरणाकश्यप ओर अधिक शक्तिशाली होता गया।

हालांकि प्रहलाद अपने पिता से बिलकुल अलग था और किसी भी जीव को नुकसान नही पहुचता था। वो भगवान विष्णु का अगाध भक्त था और जनता उसके अच्छे व्यवाहर की वजह से उससे प्यार करती थी।


एक दिन गुरु शुक्राचार्य प्रहलाद की शिकायत लेकर हिरणाकश्यप के पास पहुचे और कहामहाराज , आपका पुत्र हम जो पढ़ाते है वो नही पढ़ता है और सारा समय विष्णु के नाम ने लगा रहता हैहिरणाकश्यप ने उसी समय गुस्से में प्रहलाद को बुलाया और पूछा कि वो दिन भर विष्णु का नाम क्यों लेता रहता है। प्रहलाद ने जवाब दियापिताश्री , भगवान विष्णु ही सारे जगत के पालनहार है इसलिए मै उनकी पूजा करता हु मै दुसरो की तरफ आपके आदेशो को मानकर आपकी पूजा नही कर सकता हुआ “|

हिरणाकश्यप ने अब शाही पुरोहितो से उसका ध्यान रखने को कहा और विष्णु का जाप बंद कराने को कहा लेकिन कोई फर्क नही पड़ा। इसके विपरीत गुरुकुल में प्रहलाद दुसरे शिष्यों को भी उसकी तरह भगवान विष्णु की आराधना करने के लिए प्रेरित करने लगा।

हिरणाकश्यप ने परेशान होकर फिर प्रहलाद को बुलाया और पूछापुत्र तुम्हे सबसे प्रिय क्या है ?”

प्रहलाद ने जवाब दियामुझे भगवान विष्णु का नाम लेना सबसे प्रिय लगता है

अब हिरणाकश्यप ने पूछाइस सृष्टि में सबसे शक्तिमान कौन है ?”

प्रहलाद ने फिर उत्तर दियातीन लोको के स्वामी और जगत के पालनहार भगवान विष्णु सबसे सर्वशक्तिमान है

अब हिरणाकश्यप को अपने गुस्से पर काबू नही रहा और उसने अपने पहरेदारो से प्रहलाद को विष देने को कहा। प्रहलाद ने विष का प्याला पूरा पी लिया लेकिन उसकी मृत्यु नही हुयी। सभी व्यक्ति इस चमत्कार को देखकर अचम्भित रह गये।

अब हिरणाकश्यप ने आदेश दिया कि प्रहलाद को बड़ी चट्टान से बांधकर समुद्र में फेंक दो लेकिन फिर चमत्कार हुआ और रस्सिया अपने आप खुल गयी। भगवान विष्णु का नाम लेकर वो समुद्र जल से बाहर गया। इसके बाद एक दिन जब प्रहलाद भगवान विष्णु के ध्यान में मग्न था तब उस पर उन्मत्त हाथियों के झुण्ड को छोड़ दिया लेकिन वो हाथी उसके पास शांति से बैठ गये।

अब हिरणाकश्यप ने अपनी बहन होलिका और बुलाया और कहाबहन तुम्हे भगवान से वरदान मिला है कि तुम्हे अग्नि से कोई नुकसान नही होगा , मै तुम्हारे इस वरदान परखना चाहता हूं , मेरा पुत्र प्रहलाद दिन भर विष्णु का नाम जपता रहता है और मुझसे सामना करता हैमै उसकी सुरत नही देखना चाहता हु …..मै उसे मारना चाहता हु क्योंकि वो मेरा पुत्र नही है …..मै चाहता हु कि तुम प्रहलाद को गोद में बिठाकर अग्नि पर बैठ जाओ

होलिका ने अपने भाई की बात स्वीकार कर ली।

अब होलिका ने ध्यान करते हुए प्रहलाद को अपनी गोद में बिठाया और हिरणाकश्यप को आग लगाने को कहा। हिरणाकश्यप प्रहलाद के भक्ति की शक्ति को नही जानता था। फिर भी आग से प्रतिरक्षित होलिका जलने लग गयी और उसके पापो ने उसका नाश कर दिया। जब आग बुझी तो प्रहलाद उस जली हुयी जगह के मध्य अभी भी ध्यान में बैठा हुआ था जबकि होलिका कही भी नजर नही आयी।

अब हिरणाकश्यप भी घबरा गया और प्रहलाद को ध्यान से खीचते हुए ले गया और चिल्लाते हुए बोलातुम कहते हो तुम्हारा विष्णु हर जगह पर है , बताओ अभी विष्णु कहा पर है ? वो पेड़ के पीछे है या मेरे महल में है या इस स्तंभ में है बताओ ?

प्रहलाद ने अपने पिता की आँखों में आँखे मिलाकर कहाहां पिताश्री , भगवान विष्णु हर जगह पर है

क्रोधित हिरणाकश्यप ने अपने गदा से स्तम्भ पर प्रहार किया और गुस्से से कहातो बताओ वो कहा है

हिरणाकश्यप दंग रह गया और देखा कि वो स्तम्भ चकनाचूर हो गया और उस स्तम्भ से एक क्रूर पशु निकला जिसका मुंह शेर का और शरीर मनुष्य जैसा था | हिरणाकश्यप उस आधे पशु और आधे मानव को देखकर पीछे हट गया। तभी उस आधे पशु और आधे मानव ने जोर से कहामै नारायण का अवतार नरसिंह हु और मै तुम्हारा विनाश करने आया हूं

हिरणाकश्यप उसे देखकर जैसे ही बच कर भागने लगा तभी नरसिंह ने पंजो से उसे जकड़ दिया। हिरणाकश्यप ने अपने आप को छुडाने के बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रहा।

नरसिंह अब हिरणाकश्यप को घसीटते हुए दरवाजे की चौखट तक ले गया जो ना घर में था और ना घर के बाहर और उसे अपनी गोद में बिठा दिया जो ना आकाश में था और ना ही धरती पर और सांझ के समय ना ही दिन और ना ही रात हिरणाकश्यप को अपने पंजो नाहे अस्त्र ना ही शस्त्र से उसका वध कर दिया।हिरणाकश्यप का वध करने के बाद दहाड़ते हुए नरसिंह सिंहासन पर बैठ गया।

सारे असुर ऐसे क्रूर पशु को देखकर भाग गये और देवताओ की भी नरसिंह के पास जाने की हिम्मत नही हुयी। अब बिना डरे हुए प्रहलाद आगे बढ़ा और नरसिंहा से प्यार से कहाप्रभु , मै जानता हु कि आप मेरी रक्षा के लिए आये हो

नरसिंह ने मुस्कुराकर जवाब दियाहां पुत्र मै तुम्हारे लिए ही आया हु , तुम चिंता मत करो तुम्हे इस कथा का ज्ञान नही है कि तुम्हारे पिता मेरे द्वारपाल विजय है उन्हें एक श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा और तीन ओर जन्मो के पश्चात उसे फिर वैकुण्ठ में स्थान मिल जाएगा इसलिए तुम्हे चिंता करने की कोई आवश्यकता नही है

प्रहलाद ने अपना सिर हिलाते हुए कहाप्रभु अब मुझे कुछ नही चाहिएनरसिंह ने अपना सिर हिलाया और कहानही पुत्र तुम जनता पर राज करने के लिए बने हो और तुम अपने जनता की सेवा करने के पश्चात वैकुण्ठ आना

प्रहलाद अब असुरो का उदार शासक बन गया जिसने अपने शासनकाल के दौरान प्रसिद्धि पायी और असुरो के पुराने क्रूर तरीके समाप्त कर दिए।

नरसिंह मंत्र

नरसिंह के बारे में कई तरह की प्रार्थनाएँ की जाती हैं जिनमे से यह प्रमुख है।

नरसिंह मंत्र ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥

अर्थात : हे क्रुद्ध एवं शूर-वीर महाविष्णु, तुम्हारी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है। हे नरसिंहदेव, तुम्हारा चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं तुम्हारे समक्षा आत्मसमर्पण करता हूँ।

भगवान नरसिंह अवतार के स्तुति के अन्य मंत्र :

प्रहलाद हृदयाहलादं भक्ता विधाविदारण। शरदिन्दु रुचि बन्दे पारिन्द् बदनं हरि ॥
नमस्ते नृसिंहाय प्रहलादाहलाद-दायिने। हिरन्यकशिपोर्ब‍क्षः शिलाटंक नखालये ॥
इतो नृसिंहो परतोनृसिंहो, यतो-यतो यामिततो नृसिंह। बर्हिनृसिंहो ह्र्दये नृसिंहो, नृसिंह मादि शरणं प्रपधे ॥
तव करकमलवरे नखम् अद् भुत श्रृग्ङं। दलित हिरण्यकशिपुतनुभृग्ङंम्। केशव धृत नरहरिरुप, जय जगदीश हरे ॥

 

Support Us


Satyagraha was born from the heart of our land, with an undying aim to unveil the true essence of Bharat. It seeks to illuminate the hidden tales of our valiant freedom fighters and the rich chronicles that haven't yet sung their complete melody in the mainstream.

While platforms like NDTV and 'The Wire' effortlessly garner funds under the banner of safeguarding democracy, we at Satyagraha walk a different path. Our strength and resonance come from you. In this journey to weave a stronger Bharat, every little contribution amplifies our voice. Let's come together, contribute as you can, and champion the true spirit of our nation.

Satyaagrah Razorpay PayPal
 ICICI Bank of SatyaagrahRazorpay Bank of SatyaagrahPayPal Bank of Satyaagrah - For International Payments

If all above doesn't work, then try the LINK below:

Pay Satyaagrah

Please share the article on other platforms

To Top

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text. The website also frequently uses non-commercial images for representational purposes only in line with the article. We are not responsible for the authenticity of such images. If some images have a copyright issue, we request the person/entity to contact us at This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it. and we will take the necessary actions to resolve the issue.


Related Articles